CORONA is not a
laughing matter – The lighter side – 29
I decided to stop at 30
and this is the last but 1 in the series of the lighter side of Corona. Many
things are happening in quick succession. India is now among the 10 worst
countries in Covid 19 cases – 1 lakh 40 thousand positive cases and 4 thousand
deaths. Ever since the relaxed lockdown - 4, more and more cases are detected
on daily basis with an alarming more than 6 thousand cases in a day. We need to
be alert and careful. With
the starting of domestic flights on May 25 and train
journeys to start on June 1, these cases are likely to rise. Though government
machinery is not oblivious of the situation yet I thing better coordination and
cooperation among the centre and the states would be called for. Political
considerations and narrow agenda resulting in acrimonious blame game among the
stake holders are worrisome and detrimental to the public good.
A Santa Banta Joke |
Indian Health Minister
Harshvardhan has taken over as the Head of the Executive Board of the WHO at
this critical juncture. It is good but we ought to deliver. Eid is being
celebrated today with all solemnity and rightly so. We are live with a sense of
fraternity in our multi-ethnic and multi-cultural
society as our constitutional
ethos. With the opening up and starting of industrial and commercial activity,
the problems of climate and environment are back to the square one. We need to
extra aware of this and try our best to retain and sustain the good aspects of
the compulsory lockdown we underwent. Political will and the social and civic
sense are the two important ingredients to over-come the difficult situation.
It seems people are
tired. Even the joke machinery is getting slow. But still, keeping with the
series, I share some more to lessen the burden of confinement and restrictions.
We need to protect
ourselves of the deadly virus. Here are some Punjabi Desi Nuskhe to do that:
कोरोना तो बचन दे पँजाबी तरीके ........
किसे नाल सिदे मुँह गल नहीं
करो।
किसे नू छेती मुँह ना लाओ।
जिदे नाल मतलब नहीं ओदे
कोलो मुँह फेर लओ।
निवा होन दी जरुरत नहीं
सदा आकड़े रहो।
सिर्फ अपने नाल ही मतलब
रखो। होर ...
दफा हो
परां मार
शब्दां दा ज्यादा तो ज्यादा
प्रयोग करो।
See the presence of
mind of an old lady alone at home. Even the thieves are afraid of Corona virus:
आप इतनी बुजुर्ग हैं, इसके
बाद भी आपने घर से चोरों को कैसे भगाया?
दादी ने हंसते हुए कहा-
ऐसा हुआ कि मैं नीचे हॉल
में सोई थी। चोर खिड़की से घर में घुसे। उन्होंने मुझे लात मारकर उठाया।
मैं उठी, लेकिन हड़बड़ाई
नहीं।
चोरों ने पूछा, माल कहां
रखा है? तिजोरी किधर है? घर के बाकी मेंबर कहां सोएं हैं?
मैंने बिना देर किए तुरंत
कहा, सभी पैसा, जेवर लेकर खेत में बने फॉर्म हाउस में रहने गए हैं बेटा।
मैं घर में अकेली हूं।
और हां, जाते समय साबुन
से हाथ धोकर जाना। कोरोना होने के कारण मुझे यहां क्वारंटाइन किया गया है। सुनते ही
चोर लोग बेहोश
There are many
explanations on the Pradhan Sewak’s mantra of “Atam-Nirbhar” –
लॉक डाउन 4.0 का मतलब है 'आत्मनिर्भर', मतलब...
तुम जानो तुम्हारा काम जाने।
तुम जानो तुम्हारा काम जाने।
One
more with childlike simplicity:-
हम तो बचपन से ही आत्मनिर्भर थे!
जब टीचर माता-पिता के साइन करवा कर लाने को बोलते थे तो हम खुद ही करके दे देते थे!
जब टीचर माता-पिता के साइन करवा कर लाने को बोलते थे तो हम खुद ही करके दे देते थे!
Amarjeet, my friend in Oslo, fitted into my scheme of things
many a times before in these blogs. Here is the latest one from him:
ना जीने की फुर्सत ना मरने का भय है
ज़िन्दगी भी यारों एक अजीब शय है
ना जीने की फुर्सत ना मरने का भय है...
आँखों में भर कर कई खवाब सुनहरे
बेबस चले जा रहे सड़कों को नापते
ये मीलों के रास्ते, बस अपनों के वास्ते
बदहवास आलम, बदलता समय है
ना जीने की फुर्सत ना मरने का भय है...
देश को जो संवारते रहते हैं साल भर
छोड़ दिया उनको उनके ही हाल पर
इन तस्वीरों से मौन क्यों टूटता नहीं है
आंसुओं से मन क्यों पिघलता नहीं है
दर्द से टूटती अब सांसों की लय है
ना जीने की फुर्सत ना मरने का भय है...
आस भी छूटी और अब विश्वास भी टुटा
औरों की छोड़ो उनके अपने सेठों ने लूटा
दो दिन में फुस्स हुए बाकी अरमान सारे
मानो पत्थर हो गए फिर से भगवान सारे
कोरोना की छोडो भूख से मरना तय है
ना जीने की फुर्सत ना मरने का भय है...
देश बचाने वालों को मिलती ढेरों ताली
देश बनाने वाले खाएं लाठी-औ-गाली
जीने की चाह फिर कहाँ रहती है बाकी
अब रुकना नहीं चाहे दिख जाए खाकी
फरियाद सुने इनकी किसके पास समय है
ना जीने की फुर्सत ना मरने का भय है...
वक़्त है उनके ज़ख्मो पर मरहम लगा दो
उम्मीदों के झरोखों में एक दीया जला दो
अभी नहीं आये तो कब काम आओगे
किस हक़ से कल वोट मांगने जाओगे
गरीबों के हिस्से में तो मात और शय है
ना जीने की फुर्सत ना मरने का भय है...
अमर जीत ‘अंजान’
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